गौरा और बादल : दो वीर योद्धा जिनके शौर्य व पराक्रम से अलाउद्दीन ख़िलजी भी काँपता था
शौर्य और बलिदान का प्रतीक मेवाड़ अपने ह्रदय में महान वीरो और क्षत्राणियो की गौरवपूर्ण गाथा को संजोए हुए हैं। यह गवाह है चित्तौडगढ़ के जौहर और शाके के लिए , जो वीरो का अपने धर्म, अपनी स्वतन्त्रता, अपनी आन – बान और शान के लिए केसरिया बाना धारण कर रणचंडी का कलेवा बन गए। इनमे वीर योद्धा गौरा और बादल जिनके नाम और पराक्रम से मुगल आक्रांता भी थर – थर काँपते थे । मुहणोत नैणसी के प्रसिद्ध काव्य ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ में इन दो वीरों के बारे में पुख़्ता जानकारी मिलती है. इस काव्य के अनुसार की रिश्ते में चाचा और भतीजा लगने वाले ‘गौरा और बादल’ जालौर के ‘चौहान वंश’ से संबंध रखते थे, गोरा तत्कालीन चित्तौड़ के सेनापति थे एवं बादल उनके भतीजे थे। दोनो अत्यंत ही वीर एवं पराक्रमी योद्धा थे,