क्षत्रिय धर्म श्लोक: जो अधर्म, अन्याय एवं अत्याचार से प्रजा की रक्षा करता है।

क्षत्रिय धर्म श्लोक: जो अधर्म, अन्याय एवं अत्याचार से प्रजा की रक्षा करता है।

क्षत्रिय धर्म श्लोक – क्षतात् त्रायते इति क्षत्रिय: अर्थात् जो विनाश से बचाए, विनाश से रक्षा (त्राण) करता है वही क्षत्रिय हैं। धर्म का अर्थ है धारण करना। जो अधर्म, अन्याय, अत्याचार, असत्यता एवम् उत्पीड़न से रक्षा करता है वही क्षत्रिय धर्म है। श्रीमद्भागवद्गीता भागवत पुराण, वेदों में – ऋग्वेद और यजुर्वेद , मनुस्मृति में भी क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण साहस, वीरता और पराक्रम,तेज ,आभा और ऊर्जा जो उनके व्यक्तित्व से झलकती है। उदारता, असहायों की सहायता करना, नेतृत्व और संरक्षक की भूमिका निभाना आदि गुण क्षत्रियों के खून में है।