जो वीर और वीरांगनाये अपने धर्म, अपनी स्वतन्त्रता, अपनी आन – बान और शान के लिए केसरिया बाना धारण कर रणचंडी का कलेवा बन गए वो क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ? हजारों की संख्या में एक साथ अनगिनत जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं ? इतिहास को विकृत कर जोधाबाई के झूठ का सहारा लेकर क्षत्रियों को नीचा दिखाने की एक कोशिश है जोधाबाई।
और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया कि आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चुका है। जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है।
मेरे शोध के अनुसार जोधा – अकबर इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है, आप भी जाने जोधाबाई कौन थी ?
जोधाबाई कौन थी ? सत्यता जानें
अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा
अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु क्षत्रियों को नीचा दिखाने के षड्यंत्र के तहत बाद में कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई !
इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए। जबकि अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नहीं है।
गोवा के लेखक लुइस डी असिस कोरिआ की पुस्तक ‘पोर्तुगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस 1510-1735’
‘पोर्तुगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस 1510-1735’- जो ये दावा कर रही है कि जोधाबाई नामक कोई महिला, अकबर की पत्नी थी ही नहीं। बल्कि अकबर ने एक पुर्तगाली महिला से शादी की थी। लेखक लुइस डी असिस कोरिआ ये दावा कर रहे हैं कि जोधाबाई वास्तव में डोना मारिया मास्करेन्हस नाम की एक पुर्तगाली महिला थीं।
पुर्तगाली और कैथोलिक इस बात से दुखी थे कि उनकी महिलाये मुग़लों के यहां हरम में रह रही हैं। वहीं दूसरी तरफ, मुग़ल कभी ये स्वीकार नहीं कर सके कि एक फ़िरंगी, एक ईसाई, उनके सम्राट की पत्नी है। यही वजह है जिसके कारण अंग्रेजों और मुग़लों के इतिहासकारों ने जोधाबाई नाम का किस्सा बनाया। इसके साथ ही कोरिआ ने बताया कि अकबर और जहांगीर के बारे में लिखा हुआ कोई भी लेख जोधाबाई के अस्तित्व का सबूत नहीं देता।
इतिहासकारों ने अकबर की पत्नियों में हरकाबाई और मरियम-उल-ज़मानी नाम शामिल किए हैं। इस पर किताब के लेखक कोरिआ बताते हैं कि मुग़ल रिकॉर्ड में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि मरियम-उल-ज़मानी ही जहांगीर की मां थी। कोरिआ ने अपनी किताब में तर्क देते हुए बताया है, ‘ये वास्तव में एक रहस्य है क्योंकि मुग़ल इतिहासकार अब्दुल क़ादिर बदायूंनी और अबुल फज़ल ने कहीं भी जहांगीर की मां के नाम का ज़िक्र नहीं किया है’।
कोरिआ ने अपनी किताब में बताया है कि इस बात के सबूत ज़्यादा हैं कि सम्राट जहांगीर ईसाई धर्म के प्रशंसक थे। इसलिए उन्हें एक राजपूत रानी ने नहीं बल्कि एक पुर्तगाली महिला ने जन्म दिया है।
‘अल्लाहु अकबर : अंडरस्टैंडिंग द ग्रेट मुगल इन टुडेज इंडिया‘ के लेखक मणिमुग्ध एस शर्मा के अनुसार
अकबर के जीवन पर हाल ही में प्रकाशित किताब ‘अल्लाहु अकबर: अंडरस्टैंडिंग द ग्रेट मुगल इन टुडेज इंडिया‘ के लेखक मणिमुग्ध एस शर्मा इस बात को खारिज करते हुए कहते है – *महारानी जोधाबाई, जो कभी थी ही नहीं, लेकिन बड़ी सफाई से उनका अस्तित्व गढ़ा गया और हम सब झांसे में आ गए* ..
‘अकबर-ए-महुरियत’ के अनुसार
‘अकबर-ए-महुरियत’ में यह साफ-साफ लिखा है कि (ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है, क्योंकि निकाह के वक्त महलों में किसी की आखों में आँसू नहीं थे और ना ही हिन्दू गोद भराई की रस्म हुई थी !
ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में
ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है।
सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह जी के अनुसार
सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय में कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनों का इस्तेमाल करना सीख लिया है, अर्थात राजपूताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है। अर्थात आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है । हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत (1563 AD) ;
”परसी तित्ता” के अनुसार
”परसी तित्ता” के अनुसार – 17वी सदी में जब ‘परसी’ भारत भ्रमण के लिये आये तब अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को शाही हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें”।
राव और भाटों की विरदावली के अनुसार
भारत में राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था, वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है- ”गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत (1563 AD) ;
अरबी किताबों के अनुसार
इस विवाह के विषय में अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है- (“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर ।
इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शिरीन मुसवी के अनुसार
81 साल के लेखक ने इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शिरीन मुसवी का ये कहते हुए उदाहरण दिया है- ‘अकबरनामा या किसी और मुग़ल दस्तावेज में कहीं भी जोधाबाई का कोई उल्लेख नहीं है।
ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तुजुक-ए- जहांगिरी’
एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तुजुक-ए- जहांगिरी’ जो जहांगीर की आत्मकथा है, इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नहीं किया ।
अकबर की बेगमें
उक्त सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ 5 बेगम बताई है !
- सलीमा सुल्तान
- रज़िया बेगम
- मरियम उज़-ज़मानी
- .कासिम बानू बेगम
- बीबी दौलत शाद
अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु राजपूतों को नीचा दिखाने के षड्यंत्र के तहत बाद में कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में मरियम उज़-ज़मानी, को जोधाबाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई। फिर 18 वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब “एनालिसिस एंड एंटीक्स ऑफ़ राजस्थान” में मरियम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया।
प्रामाणिक सत्य
हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी ऐतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे । कुछ और एतिहासिक जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधाबाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है।
इस खोजबीन में एक बात सामने आई, इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में ‘रुकमा’ नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी, जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी, रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को ‘रुकमा-बिट्टी’ नाम से बुलाते थे। आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को ‘हीर कुँवर’ नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ, इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी।
राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया, जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया, चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था, इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथों में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया, जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नहीं, बल्कि दासी-पुत्री थी।
निष्कर्ष
अकबर के शासनकाल के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों में मुग़ल इतिहासकार अबुल फजल और बदायूनी की रचनाओं में ‘जोधा बाई’ के नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ये स्रोत अकबर के शासनकाल के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज माने जाते है। इसके अलावा किसी भी एतिहासिक दस्तावेज में जोधाबाई का उल्लेख नहीं है। यह सिर्फ क्षत्रियों को अपमानित करने के उद्देश्य से 18 वी सदी में जोड़ा गया है।
क्षत्रिय कभी अधर्म, अन्याय, अत्याचार, असत्यता, धूर्तता एवं उत्पीड़न के सामने झुका नहीं लेकिन अब बस … हम बहुत पीड़ा भोग चुके हैं। अब जाग कर उठना ही हमारा धर्म हैं। धीरे धीरे हम जहां थे, वहा से हटाने के लिए साजिशें रची गई। हमारे त्याग, तप और बलिदानों को दूसरे रूप में पेश करना शुरू कर दिया। सभी वर्गो की दृष्टि में हमारा शोषक का चरित्र चित्रण कर उनकी नजरों से गिराने की साजिशें रची गई। उसी साजिश के तहत आज भी 70 वर्षों से यह क्रम निरन्तर जारी है।
चाहे मीडिया (प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक) हो, बड़ा हिन्दूवादी संगठन हो या सरकारें हो यह सब राजपूतों के खिलाफ एक टूल किट की तरह काम कर रही है। कभी राणा पूंजा को भील प्रचारित करते हैं तो सम्राट मिहिरभोज को गुर्जर, सम्राट पृथ्वीराज को, पन्नाधाय आदि को अन्य जाति के बता कर आपस में लड़ाने का कार्य कर रहे हैं। धीरे धीरे इतिहास को विकृत किया जा रहा है।
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