एकलिंगनाथजी: मेवाड़ के अधिष्ठाता भगवान एकलिंगनाथजी को अधिष्ठाता एवं महाराणा स्वयं को इनका दीवान मानते है। मेवाड़ के महाराणाओं के आराध्य देव एकलिंगनाथ जी मेवाड़ के अधिपति और महाराणा उनके दीवान कहलाते रहे हैं। इसी कारण मेवाड़ के सभी ताम्रपत्र, शिलालेख, पट्टे, परवानों में दीवानजी आदेशात लिखा गया है। देवाधिदेव महादेव एकलिंगनाथजी के रूप में मेवाड़ के महाराणाओं तथा मेवाड़ राज्य के प्रमुख आराध्य देव हैं। आइए जानते है एकलिंगनाथजी की महिमा के बारे में –
एकलिंगनाथजी का मंदिर
भगवान एकलिंगनाथजी का मंदिर उदयपुर से लगभग 22 किलोमीटर दूर कैलाशपुरी नामक स्थान पर स्थित है और मेवाड़ के राजपरिवार तथा जनता के लिए आराध्य देव के रूप में पूजा जाता है। मेवाड़ की धरती, जहां वीरता और आस्था का अनूठा संगम है, वहां एकलिंगनाथ भगवान शिव का मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि मेवाड़ की संस्कृति, इतिहास और गौरव का प्रतीक भी है।
एकलिंगनाथजी का ऐतिहासिकता
15वीं शताब्दी के ग्रंथ एकलिंग महात्म्य के अनुसार – एकलिंगनाथजी में मूल मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ने करवाया था। कहा जाता है कि बप्पा रावल ने भगवान शिव की आराधना कर उनसे मेवाड़ का शासन प्राप्त किया था। इसके बाद से ही एकलिंगनाथजी को मेवाड़ का स्वामी, राजा या अधिष्ठाता माना जाने लगा। मेवाड़ के महाराणा स्वयं को एकलिंगनाथ का दीवान मानते थे और उनके आदेशानुसार शासन करते थे। यह परंपरा आज भी जारी है, जो मेवाड़ की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है।
तुर्क आक्रान्ताओं द्वारा आक्रमण: आक्रान्ताओं द्वारा मूल मंदिर और विग्रह (मूर्ति) को नष्ट कर दिया गया था । सबसे प्राचीन मूर्ति महाराणा हम्मीर (14वीं शताब्दी) द्वारा स्थापित की गई थी, जिन्होंने मुख्य मंदिर का व्यापक जीर्णोद्धार भी करवाया था।महाराणा कुम्भा (15वीं शताब्दी) ने विष्णु मंदिर के निर्माण के अलावा मंदिर का पुनर्निर्माण भी करवाया था। उनके 1460 के शिलालेख में उन्हें “एकलिंग का निजी सेवक” बताया गया है।
15वीं शताब्दी के अंत में, मालवा के तुर्क आक्रांता शाह ने मेवाड़ पर हमला किया और एकलिंगनाथजी के मंदिर को तहस-नहस कर दिया। कुंभा के बेटे महाराणा रायमल (शासनकाल 1473-1509) ने उसे हराकर बंदी बना लिया। महाराणा रायमल ने मंदिर परिसर के अंतिम बड़े पुनर्निर्माण का संरक्षण किया और मुख्य मंदिर में वर्तमान मूर्ति स्थापित की।
एकलिंगनाथजी मंदिर की वास्तुकला
अद्भुत वास्तुकला: एकलिंगनाथ मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। यह मंदिर दो मंजिला है और इसकी छत पिरामिड शैली में बनी हुई है। मंदिर के नक्काशीदार टावर और शिल्पकला कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। मंदिर में चांदी के सांप से बना शिवलिंग भी देखने योग्य है, जो भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
मुख्य मंदिर में एकलिंगनाथजी (शिव) की चार सिरों वाली मूर्त्ति स्थापित है। चार चेहरों के साथ महादेव चौमुखी या भगवान शिव की प्रतिमा के चारों दिशाओं में देखती है। वे विष्णु (उत्तर), सूर्य (पूर्व), रुद्र (दक्षिण), और ब्रह्मा (पश्चिम) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मंदिर के चौमुखी शिवलिंग की विशेषता यह है कि यह चार दिशाओं में ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और सूर्य के रूप में विराजमान है। यह शिवलिंग काले संगमरमर से बना है और मंदिर की ऊंचाई लगभग 50 फीट है। मंदिर परिसर में 108 छोटे बड़े मंदिर भी हैं, जो इसे और भी भव्य बनाते हैं।
एकलिंगनाथजी का यह भव्य मंदिर चारों ओर ऊँचे परकोटे से घिरा हुआ है। शिव के वाहन, नंदी बैल, की एक पीतल की प्रतिमा मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित है। देवी पार्वती और भगवान गणेश, यमुना और सरस्वती की मूर्तियां भी मंदिर में स्थापित हैं। मंदिर के चांदी के दरवाजों पर भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की छवियाँ हैं। नृत्य करती नारियों की मूर्तियों को भी यहां देखा जा सकता है। गणेशजी मंदिर, अंबा माता मंदिर, नाथों का मंदिर, और कालिका मंदिर इस मंदिर के पास स्थित हैं।
इन्द्र से संबंध है इंद्र सरोवर: यहां पर दो प्राचीन तालाब हैं, एक इन्द्र सरोवर और बाघेला तालाब है। महाराणा मोकल ने इसका निर्माण कराया। इंद्र सरोवर के बारे में एक किवदंती है कि इंद्र को वृत्रासुर के मारने की ब्रह्म से ज्वर आने लगा तब उससे किसी प्रकार मुक्ति न देखकर बृहस्पति ने प्रश्न किया। कथा अनुसार ब्रह्म हत्या के प्रायश्चित की निवृत्ति लिए एकलिंगनाथ जी की आराधना के लिए इंद्र ने पर्णकुटी बनाकर पास में एक तालाब खोजा। उसी को इंद्र सरोवर कहा गया है।
इतना ही नहीं प्रसन्न होने पर इंद्र ने तालाब को फलदाता करने की प्रार्थना की तत्पश्चात उस तालाब का नाम इंद्र सरोवर नाम रख संपूर्ण फल देने वाले का गौरव एकलिंगनाथ जी ने प्रदान किया।
मेवाड़ के महाराणाओं और एकलिंगनाथजी का संबंध
मेवाड़ के महाराणाओं ने हमेशा एकलिंगनाथजी को अपना आराध्य देव माना है। युद्ध के मैदान में जाने से पहले हो या किसी शुभ अवसर पर महाराणा एकलिंगनाथजी के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद लेते थे। यहां तक कि महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा भी स्वयं को एकलिंगनाथजी का दीवान मानते थे। उन्होंने अकबर जैसे शक्तिशाली शासक के सामने झुकने से इनकार कर दिया, लेकिन एकलिंगनाथ के प्रति उनकी आस्था अटूट रही।
महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियां आईं, किन्तु उन्होंने डटकर सामना किया। एक बार उनका साहस टूटने लगा था, तब अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज ने , उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किए जाते हैं… ‘तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग।’
एकलिंगनाथजी मंदिर की महिमा का वर्णन महाराणा कुंभा और रायमल के शासनकाल में लिखे गए ग्रंथों में भी मिलता है। इन ग्रंथों में एकलिंगनाथजी को मेवाड़ की रक्षा करने वाला और राजाओं का मार्गदर्शक बताया गया है।
एकलिंगनाथजी और मेवाड़ की प्रजा
एकलिंगनाथजी मंदिर न केवल राजपरिवार के लिए, बल्कि मेवाड़ की जनता के लिए भी आस्था का केंद्र है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि एकलिंगनाथ के दर्शन मात्र से ही उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मंदिर के बाहर लगे शिलालेखों में मेवाड़ की महिमा का वर्णन है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।
एकलिंगनाथजी मंदिर में दर्शन का समय
एकलिंगनाथजी मंदिर में दर्शन का समय प्रातः 4:30 से 7:00 बजे, सुबह 10:30 से दोपहर 1:30 बजे और शाम 5:00 से 7:30 बजे तक है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन होता है, जिसमें चार प्रहर तक रुद्राभिषेक किया जाता है।
निष्कर्ष
एकलिंगनाथजी मंदिर मेवाड़ की आन, बान और शान का प्रतीक है। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि मेवाड़ के इतिहास और संस्कृति की जीवंत गाथा भी है। यहां आने वाले हर व्यक्ति को मेवाड़ की गौरवशाली परंपराओं और आस्था की अनुभूति होती है। एकलिंगनाथजी के दर्शन करने मात्र से ही मन को शांति और आत्मा को ऊर्जा मिलती है। यह मंदिर हमें यह सीख देता है कि सच्ची शक्ति और सफलता का स्रोत ईश्वर में विश्वास और निष्ठा है।
अगर आप मेवाड़ की धरती पर आएं, तो एकलिंगनाथजी के दर्शन अवश्य करें। यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा और ऐतिहासिक महत्व आपको एक अद्भुत अनुभव प्रदान करेगा।
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