बाप्पा रावल: जब अखंड भारतभूमि पर विधर्मियों के घातक कदम बढ़े, तब एक सूर्य मेवाड़ की धरती पर उदित हुए-बाप्पा रावल ! बाप्पा रावल का जन्म क्षत्रिय धर्म की ज्वाला के रूप में हुआ था। उनके रणकौशल की गूंज अरावली की चोटियों से लेकर सिंध के मैदानों तक गूंजी। अरब आक्रांताओं के दंभ को चूर-चूर करने वाले यह योद्धा भारत के पहले रक्षक थे, जिन्होंने खलीफा के सेनानायक जुनैद और अन्य विध्वंसकों को धूल चटा दी। चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाकर आज के पूरे दक्षिण एशिया में सनातन धर्म की अखंड ज्वाला जलाए रखी।
अजेय योद्धा थे बाप्पा रावल
बाप्पा रावल को अरब आक्रांताओं के विरुद्ध भारत की पहली दीवार माना जाता है। उन्होंने खलीफा के सेनापति जुनैद और अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों को राजस्थान और सिंध क्षेत्र में पराजित कर भारत के गौरव की रक्षा की।
इतिहासकारो के अनुसार बाप्पा रावल ने न केवल अरब आक्रांताओं को परास्त किया, बल्कि उन्होंने अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक अपनी विजय पताका फहराई। उनका युद्ध कौशल और रणनीति इतनी प्रभावशाली थी कि शत्रु भी उनके साहस की सराहना करते थे।
युद्धभूमि में सिंह के समान गर्जना करने वाले इस प्रतापी शासक ने न केवल रणभूमि में पराक्रम दिखाया, बल्कि अंततः राजपाट त्यागकर संन्यासी का मार्ग अपनाया-क्योंकि वीरों को न तो राज्य की लालसा होती है और न ही ताज की भूख! बाप्पा रावल केवल एक राजा नहीं, सनातन संस्कृति की आन-बान-शान थे। उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है-एक योद्धा, एक संरक्षक, एक अमर गाथा !
बाप्पा रावल : कालभोज से बाप्पा बनने तक की कहानी
बाप्पा रावल का जन्म 8वीं शताब्दी में गुहिल वंश में हुआ था। गुहिल राजपूतों की यह वंशावली सिसोदिया राजाओं की पूर्वज मानी जाती है। बाप्पा का असली नाम कालभोज था, लेकिन वे इतिहास में बाप्पा रावल के नाम से प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि बचपन से ही वे कुशाग्र बुद्धि और युद्धकला में निपुण थे।
जब भी भारत के महान योद्धाओं और राष्ट्ररक्षकों की गाथा कही जाती है, तो मेवाड़ के वीर बाप्पा रावल का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया जाता है। वे न केवल मेवाड़ के संस्थापक थे, बल्कि उन चंद योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने अरब आक्रांताओं के बढ़ते कदमों को रोका और हिंदुस्तान की संस्कृति व परंपराओं की रक्षा की। बाप्पा रावल का जीवन पराक्रम, शौर्य और हिंदू एकता का प्रतीक था।
बचपन में वे एक हरित ऋषि के संपर्क में आए, जिन्होंने उन्हें आध्यात्मिक और सैन्य प्रशिक्षण दिया। इसी दौरान उन्होंने चित्तौड़ पर अधिकार कर मेवाड़ राज्य की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया
अजेय योद्धा: अरब आक्रांताओं का विनाश
8वीं शताब्दी में जब सिंध पर अरब आक्रमणकारी हमला कर रहे थे, तब भारत को एक ऐसे योद्धा की आवश्यकता थी, जो इन बाहरी शत्रुओं को रोक सके। बाप्पा रावल ने यह बीड़ा उठाया और अपनी कुशल रणनीति से अरबों को परास्त किया। उनके नेतृत्व में क्षत्रिय राजाओं की एक संगठित सेना ने अरब सेनाओं के विस्तार को रोका और उन्हें पराजित कर सिंध से खदेड़ दिया। उन्होंने भारत को 400 साल तक अरब आक्रमण से बचाया।
इतिहासकार मानते हैं कि बाप्पा रावल ने न केवल अरब आक्रांताओं को परास्त किया, बल्कि उन्होंने अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक अपनी विजय पताका फहराई। उनका युद्ध कौशल और रणनीति इतनी प्रभावशाली थी कि शत्रु भी उनके साहस की सराहना करते थे।
बाप्पा रावल की सैन्य रणनीति
- गुरिल्ला युद्ध शैली: बाप्पा रावल ने घात लगाकर युद्ध करने की रणनीति अपनाई, जिससे शत्रु को भारी क्षति पहुंचाई जा सके।
- संगठित क्षत्रिय सेना: उन्होंने अन्य राजपूत और क्षत्रिय राजाओं को एकजुट कर एक विशाल सेना तैयार की।
- राजनीतिक कुशलता: वे न केवल महान योद्धा थे, बल्कि एक कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने अपने राज्य के विस्तार और सुरक्षा के लिए दूरदर्शी नीति अपनाई।
- सैनिकों की दृढ़ता: उनकी सेना में हर सैनिक पूरी तरह प्रशिक्षित और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत रहता था।
बाप्पा रावल: चित्तौड़ से लेकर सिंध तक की विजय यात्रा

बाप्पा रावल (713-753 ई.) मेवाड़ के गुहिल वंश के महान शासक थे, जिन्हें राजपूत इतिहास में वीरता और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने न केवल मेवाड़ को संगठित किया बल्कि चित्तौड़ को भी अपनी राजधानी बनाकर एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना की।
चित्तौड़ की विजय
बाप्पा रावल को चित्तौड़ दुर्ग प्राप्त करने का श्रेय दिया जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने स्थानीय मौर्य वंश के शासक मानमोरी को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। यह विजय मेवाड़ के भविष्य के गौरवशाली इतिहास की नींव बनी।
अरबों और सिंध पर आक्रमण
बाप्पा रावल की वीरता केवल चित्तौड़ तक सीमित नहीं थी। उस समय सिंध पर अरबों का प्रभाव बढ़ रहा था। उन्होंने अपने संघटित राजपूत योद्धाओं के साथ सिंध और उससे आगे तक कई विजय अभियान चलाए। कुछ स्रोतों के अनुसार, उन्होंने अरब सेनाओं को हराकर उनके बढ़ते प्रभुत्व को रोका और हिंदू राज्यों की रक्षा की।
उत्तर-पश्चिम की ओर विजय यात्रा
ऐसा कहा जाता है कि बाप्पा रावल ने केवल सिंध ही नहीं, बल्कि कंधार (अफगानिस्तान) और ईरान तक अपने पराक्रम का परचम लहराया। उन्होंने वहां के शासकों को हराकर भारतीय संस्कृति और सैन्य शक्ति का लोहा मनवाया। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, उन्होंने आगे जाकर इस्लामिक आक्रमणकारियों को भी परास्त किया और भारत की सीमाओं को सुरक्षित किया।
बाप्पा रावल और हरित ऋषि
बाप्पा रावल (713-753 ई.) मेवाड़ के गुहिल वंश के संस्थापक और महान प्रतापी शासक थे। वे अपनी वीरता, चित्तौड़ की विजय और अरब आक्रमणकारियों के प्रतिरोध के लिए प्रसिद्ध हैं।
हरित ऋषि एक महान तपस्वी और सिद्ध संत माने जाते हैं, जिनका उल्लेख बाप्पा रावल की कथा से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि बाप्पा रावल ने युवा अवस्था में हरित ऋषि की सेवा की थी और उनकी कृपा से उन्हें चित्तौड़ और आगे की विजयश्री प्राप्त हुई। कहा जाता है कि हरित ऋषि ने बाप्पा रावल को विशेष आशीर्वाद दिया था, जिससे वे शक्तिशाली शासक बने और अपना राज्य स्थापित कर सके।
सनातन धर्म रक्षा का संकल्प
बाप्पा रावल केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि धर्मपरायण शासक भी थे। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। उनके शासनकाल में मंदिरों और गुरुकुलों का विशेष ध्यान रखा गया। वे अपने सैनिकों को आध्यात्मिक शिक्षा भी दिलवाते थे, जिससे वे केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि धर्मरक्षक भी बनें।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि बाप्पा रावल ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में राजपाट त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया था। उन्होंने जीवन के अंतिम समय को ईश्वर की भक्ति और तपस्या में व्यतीत किया। यह उनकी महानता और त्याग की मिसाल थी।
बाप्पा रावल का वंश: सिसोदिया राजवंश की नींव
बाप्पा रावल की वीरता और कुशल नेतृत्व के कारण मेवाड़ एक मजबूत और शक्तिशाली राज्य बना, जो आने वाले कई शताब्दियों तक राजपूतों की शौर्यभूमि बना रहा। उनके वंशजों में राणा कुम्भा,महाराणा हमीर, महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे महायोद्धा हुए, जिन्होंने उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया।
आज भी बाप्पा रावल की गाथाएं राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में बड़े गर्व से सुनाई जाती हैं। वे केवल एक इतिहास पुरुष नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति, वीरता और हिंदू एकता के प्रतीक हैं।
निष्कर्ष
बाप्पा रावल को अरब आक्रांताओं के विरुद्ध भारत की पहली दीवार माना जाता है। उन्होंने खलीफा के सेनापति जुनैद और अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों को राजस्थान और सिंध क्षेत्र में पराजित कर भारत के गौरव की रक्षा की। चित्तौड़ पर अधिकार कर इसे अपनी राजधानी बनाया और क्षत्रिय धर्म और सनातन संस्कृति के रक्षक बने
बाप्पा रावल का जीवन हमें सिखाता है कि यदि संकल्प अटल हो और उद्देश्य स्पष्ट हो, तो कोई भी शक्ति हमारे राष्ट्र और संस्कृति को हानि नहीं पहुंचा सकती। उन्होंने अपने साहस, पराक्रम और बुद्धिमत्ता से न केवल अपने राज्य की रक्षा की, बल्कि हिंदू सभ्यता को भी बचाया।
बाप्पा रावल (713-753 ई.) केवल एक राजा नहीं, बल्कि वीरता और स्वाभिमान का जीवंत प्रतीक थे। गहलोत वंश (सिसोदिया) के इन महान शासक ने न केवल मेवाड़ की नींव रखी बल्कि अखंड भारत की अस्मिता को सुदृढ़ किया।
इसे भी पढ़े –
अतुलनीय लेखन सामग्री 🙏