विजयस्तम्भ चित्तौड़गढ़ :
चित्तौड़गढ़ के बारे में कहा गया है कि “ गढ़ तो गढ़ चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढ़ैया ”
कभी काबुल और कंधार तक फैला, मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ जिसका कण कण भक्ति, शक्ति और शौर्य कि गाथा अपने मे समेटे हुए, अनगिनत युद्ध, अनगिनत योद्धाओं का बलिदान तो मीरा बाई की भक्ति हजारों वीरांगनाओं के जौहर और शाकाओ का साक्षी रहा चित्तौड़गढ़ ।
चित्तौरगढ़ दुर्ग का कण कण आज भी हमे क्षत्रिय संस्कृति और सनातन धर्म की याद दिलाता है।
विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी और उसकी सेना को सारंगपुर युद्ध में परास्त कर अपनी ऐतिहासिक विजय की याद में निर्माण करवाया। महाराणा कुम्भा हमेशा अजेय रहे हैं। उन्होंने गुजरात और मालवा के तुर्क आक्रांताओं को न केवल परास्त किया बल्कि उनको कैद में भी रखा।
विजय स्तम्भ का निर्माण सन् 1440 से 1448 के मध्य करवाया। और इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत १५०५ माघ सुदी दश्मी को हुई । महाराणा कुम्भा ने अपने आराध्य देव भगवान श्री विष्णु के निमित्त और समर्पित किया है। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता हैं।
विजय स्तम्भ 47 फीट के 10 फीट ऊंचे आधार पर बना 122 फीट ऊंचा नौ मंजिला यह स्तम्भ भारतीय वास्तु कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। विजय स्तम्भ आधार पर 30 फीट चौड़ा तथा ऊपर तक पहुंचने के लिए 157 सीढियां है। सीढ़ियों का क्रम गोलाकार है। इसके निर्माण में सात वर्ष लगे और 90 लाख रूपए निर्माण व्यय आया था ।
इसके मुख्य शिल्पकार सूत्रधार राव जेईता थे। और उनके सहयोगी तीनो पुत्र नापा , पूंजा और पोमा थे। विजय स्तम्भ की पांचवी मंजिल पर इनके नाम अंकित है ।
भारतीय स्थापत्य गौरव – विजयस्तम्भ :
कला की दृष्टि से कर्नल जेम्स टॉड ने इसे कुतुबमीनार से भी श्रेष्ठ माना हैं। उत्तरी भारत में कुतुबमीनार के पश्चात् लम्बाई में इसी का स्थान आता है ।
इसमें भगवान विष्णु के अवतारों और ब्रह्मा, विष्णु , और महेश तथा अनेक देवी देवताओ , रामायण और महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हुई हैं। वास्तव में यह सनातन धर्म और हिन्दुओं के पौराणिक देवताओं का अमूल्य धरोहर हैं।
विजयस्तम्भ के बाहरी एवम् अन्दर देवी, देवताओं अर्ध नरीश्वर, उमा महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, सावित्री, हरिहर और विष्णु जी के विभिन्न अवतारों की मूर्तियां उत्कीर्ण है । इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्येक मूर्ति के नीचे नाम अंकित है।
विजयस्तम्भ देश का स्थापत्य गौरव है। देश की भौगोलिक विचित्रता को अनेकानेक प्रकार से उत्कीर्ण किया है । इसे भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष कहा जाता हैं ।
सन् 1949 को विजयस्तम्भ पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया है । इसकी आठवी मंजिल पर विजयस्तम्भ प्रशस्ति का लेखन किया गया है। इसके रचयिता और लेखक अत्रि और महेश भट्ट है । सबसे ऊपरी नवीं मंजिल पर स्थित शिलालेख में चित्तौड़गढ़ के महाराणा हम्मीर से लेकर कुम्भा तक वंशावली उत्कीर्ण है।
सन् 1852 में बिजली गिरने से नौवीं मंजिल क्षतिग्रस्त हो गई थी। जिसे महाराणा स्वरूप सिंह जी ने बनवाया था । एवम् महाराणा भूपाल सिंह जी ने इसका जीर्णोद्धार कराया।
विजयस्तम्भ राजस्थान पुलिस एवम् माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान का प्रतीक चिन्ह भी है ।
महाराणा कुम्भा को मेवाड़ और चित्तौरगढ़ का आधुनिक निर्माता भी कहते हैं। महाराणा कुम्भा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं था। बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। संगीतराज उनकी महान रचना है। जिसे साहित्य का कीर्ति स्तम्भ माना जाता हैं।
महाराणा कुम्भा को प्रजा नरपति , गजपति , हिन्दू सूरतान , वराह , परम भागवत आदि अनेक नामों से सम्बोधित करती थी ।
विजयस्तम्भ सैकडो वर्षो से आज भी विजय की याद दिलाता हैं और क्षत्रिय और सनातन धर्म की गौरव गाथा और कर्तव्य की याद दिलाता रहेगा ।
आपको यह जानकारी कैसी लगी, आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन करेंगे । धन्यवाद । जय श्री राम ।