राजा हम्मीर देव चौहान: अपना शीश काटकर शिव को अर्पित कर दिया

राजा हम्मीर देव चौहान: क्षत्रिय स्वाभिमान, अडिग संकल्प और अजेय पराक्रम की ज्वलंत ज्योति, रणथम्भौर के अमर प्रतापी शासक राजा हम्मीर देव चौहान भारतभूमि के गौरवशाली इतिहास में अमिट स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। जब तुर्क आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने संपूर्ण भारत को अपने अधीन करने की ठानी, तब वीर हम्मीर देव ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अद्वितीय शौर्य और बलिदान का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। रणथम्भौर का दुर्ग उनका अडिग संकल्प था, जिसे छल, कपट और बाहुबल से तोड़ना असंभव सिद्ध हुआ। हम्मीर देव ने अपने वचन को जीवन से बढ़कर माना और “हम्मीर हठ “ की परंपरा स्थापित की, जिसमें मृत्यु स्वीकार्य थी परंतु आत्मसमर्पण नहीं।

राजा हम्मीर देव चौहान- मातृभूमि की रक्षार्थ अद्वितीय शौर्य और बलिदान

राजा हम्मीर देव चौहान रणथंभोर (रणस्तम्भपुरा) के अंतिम चौहान राजा थेे। जिन्हे मुस्लिम कालक्रमों और साहित्य में ‘हमीर देव’ के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने रणथंभोर पर १२८२ से १३०१ तक राज्य किया। वे रणथम्भोर के सबसे महान शासकों में सम्मिलित हैं। हम्मीर देव चौहान को चौहान युग के ‘कर्ण‘ भी कहा जाता है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद इनका ही नाम इतिहास में अत्यन्त महत्व रखता है। राजपूताना के रणथम्भोर साम्राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतिभा सम्पन्न शासक हम्मीर देव को ही माना जाता है। इस शासक को चौहान वंश का उदित नक्षत्र कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने हम्मीर देव चौहान को सौलह नृप मर्दानी एवं डॉ॰ दशरथ शर्मा ने सौलह विजय का कर्ण कहकर पुकारा है। हम्मीर देव ने जहाँ पर आक्रमण किया वो ही साम्राज्य रणथम्भौर साम्राज्य का हिस्सा बन गया और शायद इसी कारण हम्मीर देव चौहान को भारत का हठी सम्राट कहाँ जाने लगा।

हम्मीर षष्ठा एकादशम् विजया: हठी रणप्रदेश: वसै,’चौहान: मुकटा: बिरचिता सूरी सरणागतम् रणदेसा रमै:

राजा हम्मीर देव चौहान का जीवन परिचय

राजा हम्मीर देव चौहान रणथम्भौर (रणतभँवर,रणस्तम्भपुरा) के शासक थे। ये सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह एवं माता का नाम हीरा कुँवर था। इनके दो भाई थे जिनके नाम सूरताना देव व बीरमा देव थे। डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह के तीसरे पुत्र थे जब की डॉ. हरविलास शारदा के अनुसार राज्य हम्मीर देव ज्येष्ठ पुत्र थे।

राजा हम्मीर देव चौहान रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक थे। वे एक महान् योद्धा थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया था। अपने 18 वर्ष के शासनकाल में दिग्विजय, महाकोटियजन यज्ञ और अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। पुरोहित विश्वरूप ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करवाया था। इतिहासकार नयनचंद सूरी ने हम्मीर देव की युद्ध में विजय का क्रमबद्ध वर्णन किया है। अलाउद्दीन के 1301 के आक्रमण को भी उन्होंने विफल कर दिया था।

हम्मीर वि॰सं॰ १३३९ (ई.स. १२८२) में रणथम्भौर (रणतभँवर) के शासक बने, ये इतिहास में ‘‘हठी हम्मीर” के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। उनकी प्रसिद्धि उनके साहस, युद्ध-कौशल और वीरगाथाओं के कारण हुई, विशेष रूप से सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध उनके संघर्ष के लिए। युद्धभूमि में वे एक महावीर की भांति लड़े, और अंततः वीरगति को प्राप्त होकर इतिहास के अमर नायक बन गए। उनकी वीरता ने सनातन धर्म और संस्कृति के अभेद्य प्रहरी के रूप में उन्हें अमर कर दिया।

युवराज हम्मीर का राज्याभिषेक

युवराज हम्मीर इतना वीर था कि तलवार के एक ही वार से मदमस्त हाथी का सिर काट देता था। उसके मुक्के के प्रहार से बिलबिला कर ऊंट धरती पर लेट जाता था। इस वीरता से प्रभावित होकर राजा जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में ही 16 दिसम्बर, 1282 को उनका राज्याभिषेक कर दिया। राव हमीर ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से चौहान वंश की रणथम्भौर तक सिमटी सीमाओं को कोटा, बूंदी, मालवा तथा ढूंढाढ तक विस्तृत किया। हमीर ने अपने जीवन में 17 युद्ध लड़े, जिसमें से 16 में उन्हें विजयी रहें।

राजा हम्मीर देव चौहान की ऐतिहासिक विजय

हम्मीर महाकाव्य के अनुसार राज्य हम्मीर देव ने अपने शौर्य एवं पराक्रम से चौहान वंश की रणथम्भौर तक सिमटी सीमाओं को कोटा, बूंदी, मालवा तथा ढूंढाढ तक विस्तृत किया। राजा हम्मीर देव चौहान ने अपने जीवन में 17 युद्ध लड़े, जिसमें से 16 में उन्हें विजयी रहें। हम्मीर देव ने धार के परमार वंश के शासक महाराजा भोज द्वितीय को पराजित किया था इस विजय को डॉक्टर दशरथ शर्मा ने 1282 ईस्वी के लगभग माना है। राजा हम्मीर देव की प्रमुख विजयों में शामिल है –

  • आबू (सिरोही) के शासकों पर विजय
  • भीमसर के शासक अर्जुन पर विजय
  • मालवा प्रदेश पर विजय
  • मांडलगढ़ पर विजय
  • काठियावाड़ के साम्राज्य पर विजय
  • चित्तौड़गढ़ सहित प्रताप गढ़ पर विजय
  • चम्पानगरी एवं त्रिभुवनगरी पर विजय
  • जलालुद्दीन खिलजी पर तीन बार विजय
  • उलगुखां, अल्पखां एवं नुसरत खां पर विजय
  • टोंक डिग्गी पर विजय
  • विराट नगर एवं मत्स्य प्रदेश पर विजय
  • पुष्कर पर विजय एवं पुष्कर झील में शाही स्नान करना
  • ग्वालियर श्योपुर साम्राज्य पर विजय
  • झाइन और बूंदी तारागढ़ सहित सम्पूर्ण हाडौती क्षेत्र पर विजय
  • उज्जैन साम्राज्य पर विजय एवं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का पुनर्निर्माण, क्षिप्रा नदी के तट पर महाकालेश्वर की पूजा करना।
  • मथुरा प्रदेश के तोमर साम्राज्य से हार के बाद संधि।

राजा हम्मीर देव चौहान और अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध

सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने वि॰सं॰ १३४७ (ई.स. १२९०) में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। उसने सबसे पहले उसने छाणगढ (झाँइन) पर आक्रमण किया। लेकिन हम्मीर देव के नेतृत्व में क्षत्रिय वीरों ने सुल्तान को इतनी हानि पहुँचाई, कि उसे विवश होकर दिल्ली लौट जाना पड़ा। छाणगढ़ पर भी हम्मीर देव ने दुबारा अधिकार कर लिया। इस आक्रमण के दो वर्ष बाद मुस्लिम सेना ने रणथम्भौर पर पुनःआक्रमण किया, लेकिन वे इस बार भी पराजित होकर दिल्ली वापस आ गए।

ई. सन् 1296 (वि॰सं॰ १३५३) में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना। वह सम्पूर्ण भारत को अपने शासन के अन्तर्गत लाने की आकांक्षा रखता था। हम्मीर के नेतृत्व में रणथम्भौर के चौहानों ने अपनी शक्ति को काफी सुदृढ़ बना लिया और राजस्थान के विस्तृत भूभाग पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के निकट चौहानों की बढ़ती हुई शक्ति को नहीं देखना चाहता था, इसलिए संघर्ष होना अवश्यंभावी था।

ई.सन् 1299 में अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात पर आक्रमण किया था। वहाँ से लूट का बहुत सा धन दिल्ली ला रहा था। मार्ग में लूट के धन के बँटवारे को लेकर कुछ सेनानायकों ने विद्रोह कर दिया तथा वे विद्रोही सेनानायक राव हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर चले गए। ये सेनानायक मीर मुहम्मद शाह और कामरू थे। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इन विद्रोहियों को सौंप देने की माँग राजा हम्मीर देव से की, हम्मीर ने उसकी यह माँग ठुकरा दी।

क्षत्रिय धर्म के सिद्धान्तों का पालन करते हुए राव हम्मीर ने, शरण में आए हुए सैनिकों को नहीं लौटाया। शरण में आए हुए की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा। वे विद्रोही सेनानायक राव हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर आ गए। इन सेनानायकों का नाम मीर मुहम्मद शाह और कामरू था। सुल्तान अलाउद्दीन ने इन विद्रोहियों को सौंप देने की मांग राव हम्मीर से की थी। हम्मीर ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। क्षत्रिय धर्म के सिद्धान्तों का पालन करते हुए राव हम्मीर ने शरण में आए हुए सैनिकों को नहीं लौटाया।

अलाउद्दीन खिलजी ने राजा हम्मीर देव चौहान को संदेश भेजकर समझौते का प्रस्ताव दिया, लेकिन हम्मीर देव ने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने स्वाभिमान और प्रजा की रक्षा के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं, लेकिन किसी के सामने झुकेंगे नहीं। यही “हम्मीर हठ” कहलाया। इस बात पर अलाउद्दीन क्रोधित होकर रणथम्भौर पर युद्ध के लिए तैयार हुआ।

राजा हम्मीर देव चौहान का हम्मीर हठ

“हम्मीर हठ” का शाब्दिक अर्थ है “हम्मीर का दृढ़ संकल्प” या “हम्मीर का अटल स्वाभिमान“। यह वाक्यांश राजा हम्मीर देव चौहान की उस अदम्य इच्छाशक्ति और निडरता को दर्शाता है, जिसके कारण उन्होंने किसी भी परिस्थिति में अपने सिद्धांतों और स्वाभिमान से समझौता नहीं किया।

सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार। तिरिया तेल, हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार।।

अर्थात् सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है। सच्चे लोग बात को एक ही बार कहते हैं। केला एक ही बार फलता है। स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है अर्थात उसका विवाह एक ही बार होता है। ऐसे ही राव हमीर का हठ है। वह जो ठानते हैं, उस पर दुबारा विचार नहीं करते।

राजपूताना के पहले शाका के लिए प्रसिद्ध है रणथम्भौर

इतिहास में शाके का अर्थ जब क्षत्रिय वीर युद्ध में जाते समय केसरिया धारण करते थे। जिसका अर्थ होता था कि अब या तो युद्ध में विजय ही होगी या फिर वीर गति को प्राप्त होगे। युद्ध में राजपूत वीरों को वीरगति मिलने के बाद उनकी क्षत्राणीयां जौहर करती थी। जिसमें वह स्वंय को अग्नि में समर्पित कर अपने सतीत्व की रक्षा करती। इस दोनों घटनाओं को ही इतिहास में जौहर और शाका कहा जाता है। राजस्थान का पहला साका रणथम्भौर में हुआ था।

अलाउद्दीन खिलजी की सेना के साथ 1301 ई. में हम्मीर का युद्ध हुआ। 11 जुलाई 1301 ई. को जब हम्मीर देव अपनी सेना के साथ केसरिया धारण कर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी पत्नी रंग देवी के नेतृत्व में राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर किया था। यह राजस्थान का पहला जौहर भी कहा जाता है।

राजा हम्मीर देव चौहान की वीरगति

11 जुलाई 1301 राजा हम्मीर देव चौहान द्वारा मुगलों पर चढ़ाई करना, हम्मीर देव के सेनानायकों अर्थात रणमल एवं रतिपाल द्वारा रणथम्भौर दुर्ग के गुप्त रास्तों से मुगलों को अवगत करा अपनी सेनाओं के साथ विश्वासघात किया, इसलिए, उन्होंने अपने वफादार साथियों के साथ मौत से लड़ने का फैसला किया। हम्मीर ने अपने भाई वीरमा, अपने मंत्री जजा और विद्रोही मंगोल नेता मुहम्मद शाह को सुरक्षित मार्ग की पेशकश की, लेकिन उनमें से किसी ने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया। राजा हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन की सेना के साथ मौत तक लड़ाई लड़ी। उनकी रानी रंगा देवी के नेतृत्व में क्षत्राणियों ने जौहर किया।

राजा हम्मीर देव चौहान द्वारा भगवान शिव को अपना शीश काटकर चढ़ाना

राजा हम्मीर देव चौहान द्वारा भगवान शिव को अपना शीश काटकर चढ़ाना, हम्मीर की रानी रंगदेवी द्वारा सैकड़ों क्षत्राणियों के साथ जौहर किया। कुछ इतिहासकार और कवियों का दावा है कि हम्मीर ने एक निश्चित हार का सामना करने पर अपना सिर काटकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया।

राजा हम्मीर देव चौहान की वीरगति पर विद्वानों एवं इतिहासकारों की राय

अमीर खुसरो लिखता हैं – “सिंह का शासन खत्म हो गया, इन रण की घाटियों में आज विश्वासघात के कारण अंतत: कुफ्र का गढ़ इस्लाम का सदन हो गया।” – अमीर खुसरो

डॉ॰ गोपीनाथ शर्मा – “चौहानों में ऐसा शासक हम्मीर देव चौहान ही था जिसने महाकोटियजन यज्ञ का महान आयोजन कर देश विदेश से महान महान राजाओं व विद्वानों को आमंत्रित किया एवं अपने हठ के कारण इस शासक को भारतीय इतिहास में हठी महाराजा के नाम से अंकित किया गया।” – डॉ॰ गोपीनाथ शर्मा

“हम्मीर देव के बराबर विपदाओं का सामना करना हर किसी के वश में नहीं था, लेकिन इतनी विकट परिस्थितियों में भी वो अपनी धैर्यता, वीरता के कारण भारतीय उपमहाद्वीप का सिंह बन बैठा।” – डॉ॰ दशरथ शर्मा

“हम्मीर महाराजा ब्राह्मणों का आदर करता था तथा भारतीय दर्शन, विद्यालयों तथा जैन संस्थाओं का संरक्षक एवं साहित्यों का महान प्रेमी था।
सिंह सवन सत्पुरूष वचन, कदली फलत इक बारतिरया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार” – न्यायचन्द्र सूरी

“महाराजा हम्मीर ने चौहानों के डूबे हुए सूर्य को रणथम्भौर में खूब चमकीला बना दिया था।” – इतिहासकार नयन भट्ट

“महाराजा हम्मीर देव चौहान भारतीय राजपूताना के उन साहसी सपूतो में से था जो अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता को मुस्लिम आक्रांताओं से बचाने में मर मिटना अपना कर्तव्य समझता था और चौहान कुल की परम्परा भी।” – डॉ॰ किशोरी लाल

हम्मीर देव के महानायकत्व को लेकर रचित काव्यग्रन्थ

हम्मीर महाकाव्य: हम्मीर महाकाव्य के रचियता नयचंद्र सूरी हैं। इस महाकाव्य में रणथम्भौर के महान शासक हम्मीर देव चौहान के साम्राज्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। हम्मीर महाकाव्य भारतीय इतिहास की एक महान कृति है। महान व्यक्तियों के बारे में ही महाकाव्य जैसे बड़े ग्रंथ लिखे जाते है। भारत के दो महान शासक थे जिनके महाकाव्य लिखे गए और वो थे पृथ्वीराज चौहान और हम्मीर देव चौहान।

हम्मीर रासो: इस महान ग्रंथ की रचना जोधराज ने की थी। इन्होंने नीवगढ़ वर्तमान नीमराणा अलवर के राजा चंद्रभान चौहान के अनुरोध पर हम्मीर रासौ नामक प्रंबधकाव्य संवत 1875 में लिखा। हम्मीर रासौ हम्मीर की वीरगाथाओं के साथ ओजस्वी भाषा में बहुत सुन्दर महाकाव्य है।

हम्मीर हठ प्रबंधकाव्य: हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य के रचियता चन्द्रशेखर कवि थे। इनका हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य हिन्दी के वीरगाथा की कालजयी अनमोल कृति मानी जाती है।

निष्कर्ष

राजा हम्मीर देव चौहान भारतीय इतिहास में अपने अद्वितीय साहस और स्वराज्य-रक्षा के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध अंतिम क्षण तक संघर्ष किया। हम्मीर देव ने अपने वचन को जीवन से बढ़कर माना और “हम्मीर हठ “ की परंपरा स्थापित की, जिसमें मृत्यु स्वीकार्य थी परंतु आत्मसमर्पण नहीं, वे न केवल एक योद्धा थे बल्कि धर्मपरायण और न्यायप्रिय शासक भी थे। उन्होंने अपने दरबार में विद्वानों और कवियों को संरक्षण दिया। उनकी वीरता की गाथाएँ आज भी लोकगीतों और ऐतिहासिक कथाओं में जीवित हैं।

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