वीरांगना किरण देवी : –
वीरांगना किरण देवी प्रतीक है सम्पूर्ण मातृ शक्ति की , शौर्य की , पराक्रम की । हमारे यहां ” यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता: “की संस्कृति रही हैं। हमारी पावन संस्कृति में अनगिनत वीरांगनाओं ने अपने सतीत्व की रक्षार्थ जौहर किए हैं। ऐसी ही वीरांगना किरण देवी जिनकी वीरता और पराक्रम के कारण अकबर को अपने प्राणों की भीख मांगनी पड़ी।
वीरांगना किरण देवी ने अपनी वीरता और क्षत्रियत्व से मेवाड़ और मारवाड़ (बीकानेर) दोनों का इतिहास में नाम अमर कर दिया ।
वीरांगना किरण देवी का इतिहास : –
हिन्दुआ सूरज महाराणा प्रताप की भतीजी और उनके छोटे भाई महाराज शक्ति सिंह जी की पुत्री एवम् बीकानेर के महाराज कुंवर पृथ्वीराज सिंह जी की विवाहिता थी क्षत्राणी किरण देवी। किरणदेवी मेवाड़ राजवंश की राजकुमारी थी। वीरांगना किरण देवी अस्त्र शस्त्र एवम् युद्ध कोशल में निपुण थी। वह साहसी और निडर थी।
अकबर और नौरोज (मीना बाजार) का मेला : –
मुगल सम्राट अकबर को विकृत मानसिकता वाले इतिहासकारों ने महान बताया है। लेकिन इस घटना से तो यहीं स्पष्ट है कि अकबर एक क्रूर और दुराचारी शासक था। अकबर अपने नापाक इरादों से दिल्ली में प्रतिवर्ष नौरोज का मेला आयोजित करवाता था। इस मेले में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। मेले में अकबर स्वयं बुर्के में महिला के वेश में घूमता था।
मेले में जो भी महिला उसे पसन्द आती, उसे दासियो द्वारा छल कपट से अपने हरम में बुलाता था। एक दिन महाराणा प्रताप की भतीजी, महाराज कुंवर शक्ति सिंह जी की पुत्री क्षत्राणी किरण देवी भी मेला देखने गई। जब अकबर ने किरण देवी को देखा तो उसने दासियों द्वारा उसे अपने हरम में बुलाने के लिए कहा।
अकबर की दासियों ने वीरांगना किरण देवी को छल कपट से उसके हरम में ले गई । अकबर उसे बेगम बनाना चाहता था।
वीरांगना किरण देवी और दुराचारी अकबर :-
जब अकबर ने वीरांगना किरण देवी को छल कपट से दासियों द्वारा अपने हरम में बुलाया तो पहले तो उसके नापाक इरादों को किरण देवी समझ न सकी। लेकिन जैसे ही अकबर ने नापाक इरादों से छूने का प्रयास किया तो वीरांगना किरण देवी एक सिंहणी की तरह झपट कर उसकी उसकी छाती पर चढ़ बैठी। इस घटना को कवि ने ………….
. ” सिंहनी सी झपट , दपट चढ़ी छाती पर, मानो षठ दानव पर, दुर्गा तेज धारी हैं।
इस घटना का वर्णन गिरधर आँसिया द्वारा रचित सगतरासो में पृष्ठ संख्या 632 वे पर दिया गया है —
वीरांगना किरण देवी ने अपनी कमर से कटार निकाल कर उसकी गर्दन पर जैसे ही वार करने लगीं। अकबर किरण देवी के पांव पकड़ कर अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। वीरांगना किरण देवी ने अकबर से कहा दुराचारी, नीच, नराधम मैं महाराणा प्रताप की भतीजी हूं। जिनके नाम से तुझे नीद नहीं आती, और कहा कि आज के बाद तू नोरोजे का मेला नहीं लगाएगा। किसी भी महिला के साथ दुराचार नहीं करेगा। अकबर ने कुरान की कसम खाकर कहा आज के बाद मीना बाजार नहीं लगाऊंगा एवम् ऐसा कृत्य नहीं करूंगा। वीरांगना किरण देवी ने अपनी ठोकरों से अधमरा कर दिया।
इसके बाद अकबर ने नोरोज का मेला (मीना बाजार) नहीं लगाया। और तो और जहां बीकानेर के महाराज कुंवर पृथ्वीराज का निवास था उस रास्ते जीवन पर्यन्त नहीं निकला। इस घटना के बाद अकबर अपने महल से कई दिनों तक बाहर नहीं निकला।
बीकानेर के संग्रहालय में भी एक पेंटिग के माध्यम से बताया गया है –
इतिहास में अनेक ऐसी घटनाओं का वर्णन ही नहीं किया गया , क्योंकि इन तुर्क आक्रांताओं को महान बताना था। आजादी के बाद भी तुष्टिकरण की नीति के कारण हमें यहीं बताया गया। क्षत्रिय संस्कृति (kshatriyasanskriti) के माध्यम से मै आपको प्रामाणिक और सत्य घटना बताऊँगा। आपके सुझाव हमे भेजे। आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन करेंगे।
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